Monday, February 10, 2014

*किताब नहीं है यह , हम सबके बीते लम्हों की डायरी है*

रात के दो बज रहे हैं और इंजीनीयरिंग की पढाई कर रहा एक लौंडा यू ट्यूब पर सर्च बॉक्स में "Hindi Kavita" टाइप कर रहा है | जो पहला वीडियो खुलता है, उसमें एक दूसरा डिग्रीधारी इंजीनियर बोलता है  "आप कविता नहीं लिखते , कविता आपको लिखती है "| पढ़ने वाला लौंडा कविता सुनाने वाले लड़के का मेल आई डी देखकर उसे सोशल नेटवर्किंग साइट पर सर्च करता है और कुछ सालों तक दोनों लाइक और कमेंट्स में मिलते रहते हैं |

तीन साल बाद कविता वाले दिव्य प्रकाश भय्या अब पुस्तक लेखक हो गए और वीडियो देखने वाले इस लड़के ने इनकी किताब दफ्तर में कूरियर से मंगा ली | अगली कुछ रातें मैंने इसकी कहानियों के नाम कर दीं| ' कथा संग्रह' जो कि इसका साहित्यिक जौनर हो सकता है पर सच में ऐसा कुछ है जिसे पढ़ आदमी अपने लड़कपन, जवानी और डेब्यू प्रेम की दुनिया में गोते लगा आये|





किरायेदार की कशमकश, लड़कपन की फंतासियां, प्यार के प्रयोग और रिश्तों के रंगों को कागज़ी कैनवास पर सजाती "Terms & Conditions apply" (Sorry ! नाम से पहले * का निशान लगाना भूल गया) यह किताब नहीं है हम सबके बीते दिनों की डायरी है| जिसमें बचपन के ट्यूशन में उस 'खास' का इन्तजार करती बेंच है, किराये की बिल्डिंग में पड़ोसन के साथ दो मग कॉफी है और मोहल्ले के चौराहे पर बने सैलून में जुम्मन हज्जाम की कहानियाँ भी |
कई कहानियाँ आपको बिल्कुल अपने स्कूल की मस्ती और कॉलेज कैम्पस का वह लेख जोखा याद दिलाएंगी, जो आपने कभी मन के पन्नों पर उकेरा था या खुद उभर गया था| तीन चार कहानियों को ग्रुप साहित्य के रूप में जाना जा सकता है | "आस्क एक्सपर्ट" ऐसे ही एक कहानी है जो पांच छ लौंडेनुमा लड़के ग्रुप में पढ़ें तो कई दिनों तक इसे याद कर हँसते रहेंगे | हम सबके स्कूल में एक ऐसी लड़की रही है जिसके बारे में क्लास के लड़के रोचक किस्से सुनाते आये पर उन किस्सों का सच दिव्य भय्या की कहानी "लोलिता" से ही पता चलता है|
वह लोग जो साहित्य का एक ख़ास मीटर हाथ में लेकर साहित्य को जांचते हों उनको हम पहले ही बोल देते हैं "यू आर NOT इनवाईटेड|"
कुछ कहानियाँ विजुअल सिक्वेंस जैसी हैं , जैसे परदे पर कोई फिल्म चली हो | एक शॉट से शुरू हुयी और बीच में कहीं वही शॉट फिर से आ गया... और कहानी फिर बढ़ने लगी| कथा साहित्य के नजरिये से यह नया प्रयोग है जो रूमानी भी है और रोमांचक भी |

हंसाते और पुराने दिनों की याद दिलाते दिलाते लेखक कभी सुलतान मिर्जा टाइप वन लाइनर मार जाता है| एक जगह लिखा है ".......अक्सर कम दूरी तय करने में ज्यादा समय लग ही जाता है | जैसे ट्रेन में एसी वाले डिब्बों की जनरल वाले डिब्बे से दूरी केवल कुछ डिब्बों की नहीं होती , कुछ सौ मीटर की नहीं होती , कई सालों की होती है |" वहीं एक और कहानी में सबसे बड़ा सच - "...वैसे भी दुनिया के आधे सच झूठ हैं ...और दुनिया के आधे झूठ सच |" फिर कहीं दिव्य लिखते हैं " .....फैसला हो गया था लेकिन हर बार की तरह जस्टिस रह गया था |" पहली कहानी की यह लाइन "......लगता है कि अगर दुनिया के सभी पागल अपनी कहानी सुनाने लगें तो शायद पागलखानों की जरूरत ही न पड़े| उनको अलग शायद इसलिए ही रखा जाता है ताकि उनकी कहानी किसी को पता ही न चल सके|"

कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि जो नौजवान अंग्रेजी के घिसे हुए कैम्पस लव स्टोरी फ़ॉर्मूला से उकता गए हों तो हिंदी में इस पर हाथ आजमाया जा सकता है | जरूर पसंद आयेगी बाकि तो Terms & Conditions apply

No comments:

Post a Comment