Monday, July 11, 2011

इस दौड़ में सिर्फ अश्विनी ही क्यों हारे ....?????





कुछ महीनों पहले जब अश्विनी की कहानी को यहाँ ब्लॉग पर साझा किया था तो पाठकों ने उसे भारतीय एथलेटिक्स की नई उम्मीद माना था | पर "खेल में किस्मत का चाबुक कब चल जाए" ,कहा नहीं जा सकता|भारतीय एथलीट्स पर एकदम से आई डोपिंग की आंधी अश्विनी अक्कुंजी चिदानान्दा की भी कामयाबी उड़ा ले गयी है| पहले उसने राष्ट्रमंडल खेलो में 4X400m रिले में तीसरे लेग में दौडकर स्वर्ण पदक जितवाया, और फिर एशियाई खेलों में 400m हर्डल्स के साथ साथ 4X400m रिले में स्वर्ण पदक जीतकर ओलम्पिक में भारतीय एथलेटिक्स कि आस जगाई ..और 'गोल्डन गर्ल' कहलाई | इस करिश्मे के बाद देश अश्विनी को सर पर बिठाए था पर चंद महीनों की कामयाबी के बाद अब लोग उसे hall of shame में शामिल कर रहे हैं|


खेल मंत्रालय ने पूरे प्रकरण के बाद एथलेटिक्स के कोच यूरी ओगरोदोनिक को बर्खास्त कर खुद को "एक्टिव" दिखाने का प्रयास तो कर ही लिया| विदेशी कोच यूरी ओगरोदोनिक को उनके पद से हटाया दिया गया और राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) के दो सहायकों को निलम्बित कर उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर मंत्रालय इस प्रकरण पर पर खुद को गंभीर और सख्त दर्शाने का स्वांग रच चुका है| पर इस पूरी उठा पठक के बाद भी बहुत से सवाल पूछे जाना बाकी हैं|



उक्रेन से आये एथलेटिक्स कोच यूरी ओगरोदोनिक के बयानों को देखें तो वो भी अपने आप को निर्दोष बता रहें हैं | कोच साहब का कहना है कि उन्हें नहीं मालूम कि प्रशिक्षण केंद्र के अंदर प्रतिबंधित दवाएं कहाँ से आयीं? ओगरोदोनिक का अगला कथन और भी हास्यास्पद है, जिसमे उन्होंने कहा है कि वो खिलाड़ियों के कोच हैं , कोई "डॉक्टर " नहीं जिन्हें फ़ूड सप्लेमेंट्स में इस्तेमाल किये जाने वाले साल्ट्स की जानकारी हो| कोच यूरी ने नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स NIS पर भी सवाल उठाये हैं| उन्होंने NIS में खिलाड़ियों के लिए फ़ूड सप्लेमेंट्स कि कमी का जिक्र किया है और कहा है कि इस कमी के कारण ही उन्हें खिलाड़ियों के लिए बाहर से यह सप्लेमेंट्स लाने पड़े |यह कोच यूरी ओग्रोद्निक ही थे जो चीन से फ़ूड सप्लेमेंट्स लाये|साथ ही बाद में एन आई एस परिसर के बाहर स्थानीय बाजार से भी अन्य सप्लेमेंट्स खिलाडियों को दिए|

जब यह साफ़ है कि खिलाड़ियों ने वही खाद्य पदार्थ लिए जो उन्हें कोच ने उन्हें मुहैया करवाए थे तो खिलाड़ियों को इस शर्मिंदगी की दौड़ में क्यों शामिल किया जाए ? देश में खिलाड़ियों के लिए विशेष तौर पर तैयार किये गए "स्पोर्ट्स मेडिसिन सेंटर" का ना होना भी खिलाड़ियों को अनजाने में डोपिंग के गर्क में धकेल देता है|

इस सबके साथ भारतीय एथलीट्स की प्रशिक्षण भूमि एन आई एस पटियाला की भूमिका को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए| यह अपने आप में एक चिंता का विषय है कि जो परिसर देश के अनेक खिलाडियों को ओलम्पिक के लिए तैयार कर रहा है वहाँ खिलाड़ियों के लिए आवश्यक सप्लेमेंट्स ''आउट ऑफ स्टॉक'' थे| इतना ही नहीं चीन से आयातित सप्लेमेंट्स की जब परिसर में मौजूद चिकित्सकों से जांच करवाई गयी थे तब उनको इसमें कोई प्रतिबंधित साल्ट नहीं मिला |कैसे प्रतिबंधित साल्ट्स से युक्त बाहर से आये सप्लेमेंट्स परिसर में प्रवेश कर जाते हैं यह भी एक अहम सवाल है|



हर बार की तरह ही इस बार भी डोपिंग की इस रेस में एथलीट्स ही पिछड़ गए| खिलाड़ियों को सप्लेमेंट्स और अन्य जरूरी सामग्री उपलब्ध कराने में कोच, फेडरशन, प्रशिक्षण संस्थान का उत्तर दायित्व कहीं ज्यादा है| कोच का लापरवाह रवय्या , एन आई एस के अधिकारियों की शिथिलता और फेडरेशन के प्रशासन में खामी इस प्रकरण में खिलाड़ियों से ज्यादा जिम्मेदार हैं| डोपिंग की इस चिंगारी से सिर्फ खिलाड़ियों के खेमे में आग लगे और इसके पीछे जिम्मेदार लोग बच कर निकल जाएँ तो यह भारतीय खेल (खासतौर पर एथलेटिक्स) की उम्मीदों को राख कर देगी |