Thursday, February 3, 2011

ये इंडिया का चटखारा है दोस्त ...


ये इंडिया का चटखारा है दोस्त ...
जमघट से भरी सड़क में फसी हुयीं गाडियां ...गाड़ियों के बीच कहीं फसे हुए लोग ..और इन्हीं लोगों के बीच कहीं जगह बनाया हुआ वो ठेला ...जिस पर हम और आप अक्सर एक देसी चटखारे का एहसास करने जाते हैं ...
एक ओर वो दुनिया जहाँ कांच और शीशों से घिरे हुए वातानुकूलित कमरों में आदमी अपने देसी अक्स को नहीं देख पाता और दूसरी ओर वो दुनिया जहां बाज़ार के शोर में, खुले आकाश के नीचे भी एक सुकून है | वो दुनिया जहाँ ठेठ देसी होने का अहसास है, स्वाद है ,चटखारा है, और खट्टे मीठे के बीच एक जंग छिड़ी हुयी है |

किसी कॉलेज के सामने लगे एक गोल गप्पे के ठेले पर जाकर देखिये | लड़की कॉलेज आने पर क्लास में जाए न जाए यहाँ जरूर सहेलियों के साथ नज़र आ जायेगी | गोल गप्पों से लड़कियों का इश्क होता ही ऐसा है | माथे से गिरकर गालों को चूमती दो लटें ..उन्हें उँगलियों से कान के ऊपर सरकाना.. और फिर गोल गप्पे खाने का सिलसिला शुरू हो जाता है| कई कॉलेजों के बाहर आशिकों ने इस दृश्य में अपनी शरीक ए हयात ढूंढ ली |

हमारी गोल गप्पों को गप करने की पूरी प्रक्रिया भी एक तरह का दर्शन है जिसमे मानव स्वभाव का अक्स अच्छी तरह देखा जा सकता है |जीभ के आखिरी से आखिरी टेस्ट बड पर भी अपनी छाप छोड़ते गोल गप्पे लडको को भी अपने चटखारे का कायल बना लेते हैं |



पहले गोल गप्पे से शुरू हुआ सिलसिला टेस्ट मैच की तरह चलता है |बीच बीच में नए ट्विस्ट आते रहते हैं | ओपनिंग के दौरान ,ठेला स्वामी से आलू या छोले ज्यादा डालने को कहना | फिर धीरे धीरे आगे बढते हुए उसमे मीठी सौंठ भी लगवा लेना | जीभ के तीखा हो जाने के बाद ,परोसने वाले का वह सवाल “भय्या बस”? पारी यूँही घोषित नहीं होती |उसका यह पूछना और जवाब देना ..”नहीं भय्या और लगादो”| किस्से की इन्तेहाँ यहीं नहीं होती |हर बार गोल गप्पे खाने के बाद भी उस से पानी की मांग कर देना ही पारी को समाप्त करता है|

अभिषेक बच्चन भले ही अपनी दिल्ली-6 में यह डिस्कवर न कर पाए हों ,आप अपनी दिल्ली-6 के बल्ली मारान(चांदनी चौक)जाकर जायका लीजिए | तिराहे पर लगी ठेलों की कतार में किसी से भी गोल गप्पों की कीमत पूछिए | दस के चार बताएगा | हर गोल गप्पा करारा इतना कि दाँतों के बीच जब टूटे तो आवाज़ से लगे कि बिस्किट चबा रहे हों|

जहां विदेशी संस्करण ने हर भारतीय व्यंजन के राज में सेंध लगा डाली | मुंबई के बड़ा पाव की जगह बरगर ने ले ली ,पराठे की जगह पीज्जा आ गया और समोसों कि जगह पैटीज़ की सत्ता ने अस्तित्व ढूंढ लिया ,वहीँ गोल गप्पों ने आज भी अपने ठेठ देसिपने को खुद से जुदा नहीं होने दिया | सिर्फ इन्ही को देखकर या कहिये खाकर कहा जा सकता है कि ये इंडिया का चटखारा है दोस्त |