Sunday, November 20, 2011

आ चलें चाँद की सैर पर ....


एक शाम वीरू काम से लौट कर अपने घर में टीवी पर समाचार देख रहा था। हर चैनल पर मारपीट, हत्‍या, लूटपाट और सरकारी घोटालों के अलावा कोई ढंग का समाचार उसे देखने को नही मिल रहा था। इन खबरों से ऊब कर वीरू ने जैसे ही टीवी बंद करने के रिमोट उठाया तो एक चैनल पर ब्रेकिंग न्‍यूज आ रही थी कि वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्‍हें चांद पर पानी मिल गया है। इस खबर को सुनते ही वीरू ने पास बैठी अपनी पत्‍नी बसन्‍ती से कहा कि अपने शहर में तो आऐ दिन पानी की किल्‍लत बहुत सताती रहती है, मैं सोच रहा हूं कि क्‍यूं न ऐसे मैं चांद पर ही जाकर रहना शुरू कर दूं।

बसन्‍ती ने बिना एक क्षण भी व्‍यर्थ गवाएं हुए वीरू पर धावा बोलते हुए कहा कि कोई और चांद पर जायें या न जायें आप तो सबसे पहले वहां जाओगे। वीरू ने पत्‍नी से कहा कि तुम्‍हारी परेशानी क्‍या है, तुम्‍हारे से कोई घर की बात करो या बाहर की तुम मुझे हर बात में क्‍यूं घसीट लेती हो। वीरू की पत्‍नी ने कहा कि मैं सब कुछ जानती हूं कि तुम चांद पर क्‍यूं जाना चाहते हो? कुछ दिन पहले खबर आई थी चांद पर बर्फ मिल गई है और आज पानी मिलने का नया वृतान्‍त टीवी वालों ने सुना दिया है। मैं तुम्‍हारे दारू पीने के चस्‍के को अच्‍छे से जानती हूं। हर दिन शाम होते ही तुम्‍हें दारू पीकर गुलछर्रे उड़ाने के लिये सिर्फ इन्‍हीं दो चीजों की जरूरत होती है। अब तो सिर्फ दारू की बोतल अपने साथ ले जा कर तुम चांद पर चैन से आनंद उठाना चाहते हो।

वीरू ने बात को थोड़ा संभालने के प्रयास में बसन्‍ती से कहा कि मेरा तुम्‍हारा तो जन्‍म-जन्‍म से चोली-दामन का साथ है। मेरे लिये तो तुम ही चांद से बढ़ कर हो। बसन्‍ती ने भी घाट-घाट का पानी पीया हुआ है इसलिये वो इतनी जल्‍दी वीरू की इन चिकनी-चुपड़ी बातों में आने वाली नही थी। वीरू द्वारा बसन्ती को समझाने की जब सभी कोशिशें बेकार होने लगी तो उसने अपना आपा खोते हुए कहा कि चांद की सैर करना कोई गुडियों का खेल नही।
वैसे भी तुम क्‍या सोच रही हो कि सरकार ने चांद पर जाने के लिये मेरे राशन कार्ड पर मोहर लगा दी है और मैं सड़क से आटो लेकर अभी चांद पर चला जाऊगा। अब इसके बाद तुमने जरा सी भी ची-चुपड़ की तो तुम्‍हारी हड्डियां तोड़ दूंगा। वैसे एक बात बताओ कि आखिर तुम क्‍या चाहती हो कि सारी उम्र कोल्‍हू का बैल बन कर बस सिर्फ तुम्‍हारी सेवा में जुटा रहूं। तुम ने तो कसम खाई हुई है कि हम कभी भी कहीं न जायें बस कुएं के मेंढ़क की तरह सारा जीवन इसी धरती पर ही गुजार दें।

बसन्‍ती के साथ नोंक-झोंक में चांद की सैर के सपने लिए न जाने कब वीरू नींद के आगोश में खो गया। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि उसने चांद पर जाने की सारी तैयारियां पूरी कर ली है। वीरू जैसे ही अपना सामान लेकर चांद की सैर के लिये निकलने लगा तो बसन्‍ती ने पूछा कि अभी थोड़ी देर पहले ही चांद के मसले को लेकर हमारा इतना झगड़ा हुआ है और अब तुम यह सामान लेकर कहां जाने के चक्‍कर में हो? वीरू ने उससे कहा कि तुम तो हर समय खामख्‍वाह परेशान होती रहती हो, मैं तो सिर्फ कुछ दिनों के लिये चांद की सैर पर जा रहा हूॅ। वो तो ठीक है लेकिन पहले यह बताओ कि जिस आदमी ने दिल्‍ली जैसे शहर में रहते हुए आज तक लालकिला और कुतुबमीनार नहीं देखे उसे चांद पर जाने की क्‍या जरूरत आन पड़ी है?
इससे पहले की वीरू बसन्‍ती के सवालों को समझ कर कोई जवाब देता बसन्‍ती ने एक और सवाल का तीर छोड़ते हुए कहा कि यह बताओ कि किस के साथ जा रहे हो। क्‍योंकि मैं तुम्‍हारे बारे में इतना तो जानती हूं कि तुममें इतनी हिम्‍मत भी नहीं है कि अकेले रेलवे स्टेशन तक जा सको, ऐसे में चांद पर अकेले कैसे जाओगे? मुझे यह भी ठीक से बताओ कि वापिस कब आओगे?


बसन्‍ती के इस तरह खोद-खोद कर सवाल पूछने पर वीरू का मन तो उसे खरी-खरी सुनाने को कर रहा था। इसी के साथ वीरू के दिल से यही आवाज उठ रही थी कि बसन्‍ती को कहे कि ऐ जहर की पुड़िया अब और जहर उगलना बंद कर। परंतु बसन्‍ती हाव-भाव को देख ऐसा लग रहा था कि बसन्‍ती ने भी कसम खा रखी है कि वो चुप नही बैठेगी। दूसरी और चांद की सैर को लेकर वीरू के मन में इतने लड्डू फूट रहे थे कि उसने महौल को और खराब करने की बजाए अपनी जुबान पर लगाम लगाऐ रखने में ही भलाई समझी। वीरू जैसे ही सामान उठा कर चलने लगा तो बसन्‍ती ने कहा कि सारी दुनियां धरती से ही चांद को देखती है तुम भी यही से देख लो, इतनी दूर जाकर क्‍या करोगे? अगर यहां से तुम्‍हें चांद ठीक से नहीं दिखे तो अपनी छत पर जाकर देख लो। बसन्‍ती ने जब देखा कि उसके सवालों के सभी आक्रमण बेकार हो रहे है तो उसने आत्‍मसमर्पण करते हुए वीरू से कहा कि अगर चांद पर जा ही रहे हो तो वापिसी में बच्‍चों के वहां से कुछ खिलाने और मिठाईयां लेते आना।

वीरू ने भी उसे अपनी और खींचते हुए कहा कि तुम अपने बारे में भी बता दो, तुम्‍हारे लिये क्‍या लेकर आऊ? बसन्‍ती ने कहा जी मुझे तो कुछ नहीं चाहिये हां आजकल यहां आलू, प्‍याज बहुत मंहगे हो रहे है, घर के लिये थोड़ी सब्‍जी लेते आना। कुछ देर से अपने सवालों पर काबू रख कर बैठी बसन्‍ती ने वीरू से पूछा कि जाने से पहले इतना तो बताते जाओ कि यह चांद दिखने में कैसा होता है? अब तक वीरू बसन्‍ती के सवालों से बहुत चिढ़ चुका था, उसने कहा कि बिल्‍कुल नर्क की तरह। क्‍यूं वहां से कुछ और लाना हो तो वो भी बता दो।
बसन्‍ती ने अपना हाथ खींचते हुए कहा कि फिर तो वहां से अपनी एक वीडियो बनवा लाना, बच्‍चे तुम्‍हें वहां देख कर बहुत खुश हो जायेंगे। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि वो राकेट में बैठ कर चांद की सैर करने जा रहा है। रास्‍ते में राकेट के ड्राईवर से बातचीत करते हुए मालूम हुआ कि आज तो अमावस है, आज चांद पर जाने से क्‍या फायदा क्‍योंकि आज के दिन तो चांद छु्ट्टी पर रहता है।

इतने में गली से निकलते हुए अखबार वाले ने अखबार का बंडल बरामदे में सो रहे वीरू के मुंह पर फेंका तो उसे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने उसे चांद से धक्‍का देकर नीचे धरती पर फैंक दिया हो। वीरू की इन हरकतों को देखकर तो कोई भी व्‍यक्‍ति यही कहेगा कि जो मूर्ख अपनी मूर्खता को जानता है, वह तो धीरे-धीरे सीख सकता है, परंतु जो मूर्ख खुद को सबसे अधिक बुद्धिमान समझता हो, उसका रोग कोई नहीं ठीक कर सकता। ....

Monday, July 11, 2011

इस दौड़ में सिर्फ अश्विनी ही क्यों हारे ....?????





कुछ महीनों पहले जब अश्विनी की कहानी को यहाँ ब्लॉग पर साझा किया था तो पाठकों ने उसे भारतीय एथलेटिक्स की नई उम्मीद माना था | पर "खेल में किस्मत का चाबुक कब चल जाए" ,कहा नहीं जा सकता|भारतीय एथलीट्स पर एकदम से आई डोपिंग की आंधी अश्विनी अक्कुंजी चिदानान्दा की भी कामयाबी उड़ा ले गयी है| पहले उसने राष्ट्रमंडल खेलो में 4X400m रिले में तीसरे लेग में दौडकर स्वर्ण पदक जितवाया, और फिर एशियाई खेलों में 400m हर्डल्स के साथ साथ 4X400m रिले में स्वर्ण पदक जीतकर ओलम्पिक में भारतीय एथलेटिक्स कि आस जगाई ..और 'गोल्डन गर्ल' कहलाई | इस करिश्मे के बाद देश अश्विनी को सर पर बिठाए था पर चंद महीनों की कामयाबी के बाद अब लोग उसे hall of shame में शामिल कर रहे हैं|


खेल मंत्रालय ने पूरे प्रकरण के बाद एथलेटिक्स के कोच यूरी ओगरोदोनिक को बर्खास्त कर खुद को "एक्टिव" दिखाने का प्रयास तो कर ही लिया| विदेशी कोच यूरी ओगरोदोनिक को उनके पद से हटाया दिया गया और राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) के दो सहायकों को निलम्बित कर उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर मंत्रालय इस प्रकरण पर पर खुद को गंभीर और सख्त दर्शाने का स्वांग रच चुका है| पर इस पूरी उठा पठक के बाद भी बहुत से सवाल पूछे जाना बाकी हैं|



उक्रेन से आये एथलेटिक्स कोच यूरी ओगरोदोनिक के बयानों को देखें तो वो भी अपने आप को निर्दोष बता रहें हैं | कोच साहब का कहना है कि उन्हें नहीं मालूम कि प्रशिक्षण केंद्र के अंदर प्रतिबंधित दवाएं कहाँ से आयीं? ओगरोदोनिक का अगला कथन और भी हास्यास्पद है, जिसमे उन्होंने कहा है कि वो खिलाड़ियों के कोच हैं , कोई "डॉक्टर " नहीं जिन्हें फ़ूड सप्लेमेंट्स में इस्तेमाल किये जाने वाले साल्ट्स की जानकारी हो| कोच यूरी ने नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स NIS पर भी सवाल उठाये हैं| उन्होंने NIS में खिलाड़ियों के लिए फ़ूड सप्लेमेंट्स कि कमी का जिक्र किया है और कहा है कि इस कमी के कारण ही उन्हें खिलाड़ियों के लिए बाहर से यह सप्लेमेंट्स लाने पड़े |यह कोच यूरी ओग्रोद्निक ही थे जो चीन से फ़ूड सप्लेमेंट्स लाये|साथ ही बाद में एन आई एस परिसर के बाहर स्थानीय बाजार से भी अन्य सप्लेमेंट्स खिलाडियों को दिए|

जब यह साफ़ है कि खिलाड़ियों ने वही खाद्य पदार्थ लिए जो उन्हें कोच ने उन्हें मुहैया करवाए थे तो खिलाड़ियों को इस शर्मिंदगी की दौड़ में क्यों शामिल किया जाए ? देश में खिलाड़ियों के लिए विशेष तौर पर तैयार किये गए "स्पोर्ट्स मेडिसिन सेंटर" का ना होना भी खिलाड़ियों को अनजाने में डोपिंग के गर्क में धकेल देता है|

इस सबके साथ भारतीय एथलीट्स की प्रशिक्षण भूमि एन आई एस पटियाला की भूमिका को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए| यह अपने आप में एक चिंता का विषय है कि जो परिसर देश के अनेक खिलाडियों को ओलम्पिक के लिए तैयार कर रहा है वहाँ खिलाड़ियों के लिए आवश्यक सप्लेमेंट्स ''आउट ऑफ स्टॉक'' थे| इतना ही नहीं चीन से आयातित सप्लेमेंट्स की जब परिसर में मौजूद चिकित्सकों से जांच करवाई गयी थे तब उनको इसमें कोई प्रतिबंधित साल्ट नहीं मिला |कैसे प्रतिबंधित साल्ट्स से युक्त बाहर से आये सप्लेमेंट्स परिसर में प्रवेश कर जाते हैं यह भी एक अहम सवाल है|



हर बार की तरह ही इस बार भी डोपिंग की इस रेस में एथलीट्स ही पिछड़ गए| खिलाड़ियों को सप्लेमेंट्स और अन्य जरूरी सामग्री उपलब्ध कराने में कोच, फेडरशन, प्रशिक्षण संस्थान का उत्तर दायित्व कहीं ज्यादा है| कोच का लापरवाह रवय्या , एन आई एस के अधिकारियों की शिथिलता और फेडरेशन के प्रशासन में खामी इस प्रकरण में खिलाड़ियों से ज्यादा जिम्मेदार हैं| डोपिंग की इस चिंगारी से सिर्फ खिलाड़ियों के खेमे में आग लगे और इसके पीछे जिम्मेदार लोग बच कर निकल जाएँ तो यह भारतीय खेल (खासतौर पर एथलेटिक्स) की उम्मीदों को राख कर देगी |

Thursday, February 3, 2011

ये इंडिया का चटखारा है दोस्त ...


ये इंडिया का चटखारा है दोस्त ...
जमघट से भरी सड़क में फसी हुयीं गाडियां ...गाड़ियों के बीच कहीं फसे हुए लोग ..और इन्हीं लोगों के बीच कहीं जगह बनाया हुआ वो ठेला ...जिस पर हम और आप अक्सर एक देसी चटखारे का एहसास करने जाते हैं ...
एक ओर वो दुनिया जहाँ कांच और शीशों से घिरे हुए वातानुकूलित कमरों में आदमी अपने देसी अक्स को नहीं देख पाता और दूसरी ओर वो दुनिया जहां बाज़ार के शोर में, खुले आकाश के नीचे भी एक सुकून है | वो दुनिया जहाँ ठेठ देसी होने का अहसास है, स्वाद है ,चटखारा है, और खट्टे मीठे के बीच एक जंग छिड़ी हुयी है |

किसी कॉलेज के सामने लगे एक गोल गप्पे के ठेले पर जाकर देखिये | लड़की कॉलेज आने पर क्लास में जाए न जाए यहाँ जरूर सहेलियों के साथ नज़र आ जायेगी | गोल गप्पों से लड़कियों का इश्क होता ही ऐसा है | माथे से गिरकर गालों को चूमती दो लटें ..उन्हें उँगलियों से कान के ऊपर सरकाना.. और फिर गोल गप्पे खाने का सिलसिला शुरू हो जाता है| कई कॉलेजों के बाहर आशिकों ने इस दृश्य में अपनी शरीक ए हयात ढूंढ ली |

हमारी गोल गप्पों को गप करने की पूरी प्रक्रिया भी एक तरह का दर्शन है जिसमे मानव स्वभाव का अक्स अच्छी तरह देखा जा सकता है |जीभ के आखिरी से आखिरी टेस्ट बड पर भी अपनी छाप छोड़ते गोल गप्पे लडको को भी अपने चटखारे का कायल बना लेते हैं |



पहले गोल गप्पे से शुरू हुआ सिलसिला टेस्ट मैच की तरह चलता है |बीच बीच में नए ट्विस्ट आते रहते हैं | ओपनिंग के दौरान ,ठेला स्वामी से आलू या छोले ज्यादा डालने को कहना | फिर धीरे धीरे आगे बढते हुए उसमे मीठी सौंठ भी लगवा लेना | जीभ के तीखा हो जाने के बाद ,परोसने वाले का वह सवाल “भय्या बस”? पारी यूँही घोषित नहीं होती |उसका यह पूछना और जवाब देना ..”नहीं भय्या और लगादो”| किस्से की इन्तेहाँ यहीं नहीं होती |हर बार गोल गप्पे खाने के बाद भी उस से पानी की मांग कर देना ही पारी को समाप्त करता है|

अभिषेक बच्चन भले ही अपनी दिल्ली-6 में यह डिस्कवर न कर पाए हों ,आप अपनी दिल्ली-6 के बल्ली मारान(चांदनी चौक)जाकर जायका लीजिए | तिराहे पर लगी ठेलों की कतार में किसी से भी गोल गप्पों की कीमत पूछिए | दस के चार बताएगा | हर गोल गप्पा करारा इतना कि दाँतों के बीच जब टूटे तो आवाज़ से लगे कि बिस्किट चबा रहे हों|

जहां विदेशी संस्करण ने हर भारतीय व्यंजन के राज में सेंध लगा डाली | मुंबई के बड़ा पाव की जगह बरगर ने ले ली ,पराठे की जगह पीज्जा आ गया और समोसों कि जगह पैटीज़ की सत्ता ने अस्तित्व ढूंढ लिया ,वहीँ गोल गप्पों ने आज भी अपने ठेठ देसिपने को खुद से जुदा नहीं होने दिया | सिर्फ इन्ही को देखकर या कहिये खाकर कहा जा सकता है कि ये इंडिया का चटखारा है दोस्त |