Thursday, December 19, 2013

गीत हैं ... गीतों का क्या


गीत कमाल के होते हैं । हमारे जीवन की किताब के अनेक पन्नों पर उभरे शब्द किसी न किसी गीत में जरूर नायक या नायिका के लबों से बयां होते दिखते हैं। बचपन में सोचता था कि गीत और संवाद नायक खुद ही लिखते होंगे। जब गीतकार नामक एक आदमी के बारे में सुना तो चौंक इस बात पर गया कि क्या कोई ऐसा आदमी भी हो सकता है जो हर तरह के हालातों पर कुछ न कुछ लिखना जानता हो मसलन ख़ुशी का भी, दुख, विरह, इश्क़ का और वह सब जो इंसान के जेहन के किसी कोने में झलकता हो और बाहरी दुनिया उसे इमोशन|
रोते हुए आते हैं सब.…हँसता हुआ जो जाएगा। यह पहला गीत रहा होगा जो दिल से याद हुआ। । कई बार क्लास में जब मैडम जी का पढ़ाने का मन नहीं होता था तो बच्चों से कुछ हुनर दिखाने को कहती थीं। " यू के जी -बी " की उस क्लास में हम यही गीत गुनगुना देते थे। तब सिर्फ बाइक पर बैठा अमिताभ मन में उभरता था । बड़े होने पर जब इसकी शुरूआती पंक्तियों के फलसफे को जाना तब पता चला कि क्या मज़ेदार कॉन्सेप्ट दे गए अंजान जिनके बेटे समीर ने साजन और कुछ कुछ होता है के गीत लिखे और नब्बे के दशक के सारे हित गानों के पीछे उनके ही बोल थे|

 इस देश में कौन ऐसा होगा जो अकेला होने पर, खुश होने पर , दुखी होने पर गाने नहीं सुनता होगा या गुनगुनाता नहीं होगा । गीत, ग़ज़ल, गाने, रॉक सॉंग्स, कव्वाली, हेवी मेटल या कुछ भी। मन के गहरे कैनवास पर अजीब कलाएं उभार देने वाले होते हैं गीतों के बोल | पुराना टेप जब ठप हो गया तब टू इन वन से लेकर वॉकमैन तक कितने नए साथी बने। क़ुछ चाइना मेड तो कुछ नेपाल से रिश्तेदारों के हाथों लाये गए। पांचवी में रहे होंगे तब , जेब में वॉकमैन और कानों पर बेतरतीबी से ईयर फोन लटकाये घूमते थे तो खुद को सलमान खान से कम नहीं समझते थे ।



 फिर आ गया आर्यन , सिल्क रूट , यूफोरिया | आँखों में तेरा ही चेहरा , दीवाना … मैं हूँ दीवाना तेरा, … डूबा डूबा रहता हूँ आँखों में तेरी । उस दौर के चैनलों पर पॉप एल्बमों के ट्रेलर दिखते थे और नए से नए एल्बम की कैसट तुरंत हमारे घर पर होती थी। तब दुकानें सजी होती थें कैसेट की , उन पर धमाकेदार क़िस्म का एक डेग होता था जिस पर कभी अल्ताफ रज़ा या सोनू निगम गुनगुना रहे होते थे और उधर से हर आने जाने वाला उन्हें सुन रहा होता था ।

 यू ट्यूब और टोरेंत्ज की ललकती आग में इन सब की आहुति दे दी गयी । सॉन्ग्स डॉट पीके ने लोगों को वह सब पहुंचाना शुरू कर दिया जो उन्हें पैसे खर्च कर बाजार से लाना पड़ रहा होता था । क्या यह सही नहीं है कि जैसे जैसे गीतों के घर तक पहुँचने के रास्ते आसान हो गए वैसे वैसे इनके बोल भी आसान होते गए। न "एहसान तेरा होगा मुझ पर" न ही " आजा सनम मधुर चांदनी में हम"। गीतों के स्तर के गिरने या चढ़ने की बहस पुरानी है। पार्टी ऑल नाइट .... साड़ी के फॉल से …भाग भाग डी के … तमंचे पे डिस्को .. जैसे गीतों का होना जरूरी है या गैर जरूरी , इस पर बहस करने से बेहतर है कि यह जानें कि इन गानों के कामयाब होने पर भी सुनने वालों का हाथ है| सिनेमा की खूबसूरती इस ही में है कि इसमें यो यो का "दिल है आज पानी पानी " भी है और गुलज़ार का "दिल का मिज़ाज इश्क़िया" भी और दोनों साथ साथ लोगों के लबों पर हैं|


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