Showing posts with label खोज. Show all posts
Showing posts with label खोज. Show all posts

Sunday, August 22, 2010

यह दिल्ली है मेरे यार .....


रोज़ अपने मेल चेक करता हूँ तो दो तीन सहपाठी अपने नए लेख का लिंक मुझ तक पहुंचा देते हैं । उनकी बेबाक राय और सृजनशक्ति से प्रेरित होकर मैं भी सोचता हूँ की आज ब्लॉग पर कुछ नया पोस्ट करूँगा। दिल्ली में अपने पिछले एक महीने में मकान ढूँढने के अनुभवों को दोस्तों के साथ बाटने से बेहतर क्या हो सकता है। जब आया तो ऊंची इमारतें और सडको पर रेंगती गाड़ियां मेरा स्वागत करती नज़र आयीं। इसी का नाम दिल्ली है। छोटे शहर से आने वाले हर नौजवान के मन में ऐसी ही तस्वीरें सबसे पहले घर करती होंगी ।फिल्मो में देखता था की जब गाँव का लड़का शहर पहुँचता है तो सबसे पहले ऊंची ऊँची इमारतों को देखकर फ्रीज़ हो जाता है । जैसे इन इमारतों से कहीं ऊंचे उसके ख्वाब हैं जिन्हें संग अपने बैग में लादे वो शहर तक आ गया है। यूँ तो दिल्ली के कोने कोने में रिश्तेदारों की एक जमात भरी पड़ी है जो अब तक दिल्ली में प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने में काम आती रही । पर अब मामला एक दिन या दो दिन का नहीं ,एक साल का है । भारतीय समाज में रिश्तेदारों के यहाँ लम्बे वक्त तक रुकना एक अपराध से कम नहीं माना जाता।यह वही समाज है जो "अतिथि देवो भवः" का सूत्र दुनिया के सामने परोसता है। पर जब अतिथि महोदय की कृपा अधिक समय तक बरसने लगे तो उसका मन ही मन बहिष्कार किया जाने लगता है । खैर लेख का मकसद अनुभवों को बांटना है ,आलोचना परोसना नहीं।
ब्लू लाइन बसों की भीड़ ,हर वक्त कोलाहल पैदा करती गाड़ियां और दनदनाती हुई मेट्रो ..सब पहले नहीं देखा था । बचपन में एक बार दिल्ली आया था तो इंडिया गेट पर एकघंटा खड़ा होकर कौतुहल से गाड़ियों को निहारता रहा । जितनी देर में कोई गाडी पसंद आती उस से पहले ही सनसनाती हुई आँखों के सामने से ओझल हो जाती। आज गाड़ियों की संख्या अधिक हो गयी है सनसनाती गाड़ियाँ सिर्फ कुछ हिस्सों में ही दिख रही हैं ।कुछ दिन अतिथि सुख भोग लेने के बाद अपना आशियाँ कहीं और ढूँढने का मन बना लिया । "कटवारिया सराय में ही लेना वहां सस्ता मिलेगा। "मुनिरका ही सबसे नज़दीक है वहां बाज़ार भी है,वही लेना "ऐसी ही सलाह दोस्त देते रहते ।एक दोस्त को लेकर हलकी बूंदा बांदी में यह महा खोज यात्रा आरम्भ की। कटवारिया से ही श्री गणेश किया गया । सोचा घर घर जाकर पूछेंगे की मकान खाली है ??लेकिन ऐसा करना कितना सफल होगा इसकी उम्मीद नहींथी।
घर के दरवाजों को खटखटाने पर जो महिला बाहर निकल कर आती ,सबसे पहले ऊपर से नीचे देखती जैसे कोई अभियुक्त हों। फिर पूछती कहन के हो ,क्या करते हो ,फॅमिली वाले हो ??यह आखिरी सवाल जरा अजीब लगता । फिर सोचा शायद बड़ी शेव के कारण इन्हें मैं सिंगल नहीं लगा । पूरा इंटरव्यू लेने के बाद यह आंटी कह देती की नहीं खाली नहीं है कोई कमरा । लेकिन जो भी मना कर रहा था उनमे एक बात कॉमन थी ।हर कोई उम्मीद जगा रहा था .."अगली एक को खाली हो जायेगा "..."१० तारीख को आजाना बेटा तब मिल जायेगा" ..."खाली होने ही वाला है"। किसी ने बताया ,अन्दर जाओ वहां दूकान पर पता करो ..मिल जाएगा । "दुकान " पर ''मकान" मिल जाएगा ऐसा कहीं नहीं सुना था । जैसे ही पहुंचे तो उस पर एक कागज़ चस्पा किया हुआ था जिसमे सिंगल रूम के अवैलेबल होने की बात लिखी थी । तंग गलियों से गजरते हुए खोजयात्रा एक ठिकाने पर आकर रुकी । बहुत ऊँची सी इमारत थी जैसे माचिस के छोटे छोटे डब्बों को एक जैसा रंग कर एक के ऊपर एक सजा दिया हो। ऊँची इमारत में दूकान वाला लड़का बसेमेंट में ले जाने लगा । वहीँ एक खाली कमरा था । खोला तो लगा जैसे बरसो से कमरा खुद को अकेला महसूस कर रहा था और उसका सारा अकेलापन एक अजीब से दुर्गन्ध की शक्ल अख्तियार कर चुका है । वो घुटन और गंध हमारे अन्दर आने का विरोध कर रही थी । पुरानी फिल्मो में ऐसे ही कमरों में खलनायक नायक की प्रेमिका को अगवा कर छुपा लेता था । हम दोनों ही नाक मुह सिकोड़ने लगे । किराया पूछा तो बोला २५०० रुपया ।कमरे का दरवजा खोलते ही दुसरे किरायेदार का गुसलखाना सामने था । मकान के सामने बस इतनी ही जगह थी की सडक पर से एक साइकिल निकल जाए । इतनी ऊंची बिल्डिंग में भी बसेमेंट नसीब हुआ था हमे ।दोनों चल पड़े । उपर वाले कमरे की अँधेरी खिड़की से एक लड़की झाँक रही थी ,मैंने मुड़कर देखा तो पर्दा गिरा दिया । ज्यादातर नौजवान कमरा देखने से पहले आस पास की रहने वाली लडकियों को ही देखते हैं और फिर फैसला करते हैं ।
फिर अगली गली में एक मकां के बाहर बोर्ड दिखा तो उस पर दोस्त का सर नेम मेल खा गया ।सामने वाले का सर नेम अपने से मिलता हो तो एक नयी उम्मीद जग जाती है । बाहर ही एक आंटी बैठी थी । उनसे पूछ लिया कमरे के लिए । हमे मालूम था, एक बार फिर वही इंटर व्यू शुरू हो जाएगा इसलिए जल्दी जल्दी निपटाने की कोशिश की। एक काम करने वाली महिला बगल में खडी थी उसने बताया सामने उपर वाला खली है । आंटी उस पर बरस पड़ी । अनजाने में ही एक वाक् युद्ध वहां आरम्भ हो गया । हम खिसक लिए। और बताये गए मकां पर पहुचे । एक गुफानुमा जीने से उपर चढ़ हम कमरे तक पहुंचे । सामने ही एक और किरायेदार आंटी थीं जो मकां मालिक की अनुपस्थिति में मालिक की भूमिका निभा रही थीं । पता चला की जो आंटी नीचे लड़ रहीं थी उनसे इन की नहीं बनती । वो इनका कमरा उठता हुआ नहीं देख सकती ।महिलाओं की लड़ाई होती ही ऐसी है ,पूरी तरह निभायी जाती है । फिर शुरू वही सारे सवाल । अच्छा लगा की इसबार फॅमिली वाला सवाल नहीं पूछा । पूरी कोशिश की थी सिंगल दिखने की । किराये की बात, बिजली का बिल और सारे प्रतिबंधो का खुलासा उन्होंने पहली मुलाकात में कर दिया । "ज्यादा दोस्त घर पर नहीं आने चाहिए ...देर रात को घर पर मत लौटना ..लड़की तो मकां के आस पास तक नहीं आने चाहिए ..दोस्तों का जमघट घर पर ज्यादा न लगे"..और न जाने कितने ही ऐसे कायदे क़ानून उन्होंने गिना दिए । मुझे कमरे की जरूरत थी । सारी शर्ते एक सुर में स्वीकार लीं । बाद में देखा जायेगा की क्या मानना है और क्या नहीं । आंटी किरायेदार ही थी इसलिए उन्होंने हमारी किराए कम करने की गुहार को सहर्ष स्वीकार कर लिया । हम अपने सामने वालो के किसी एक स्वरुप को अपने से रिलेट कर लेते हैं और एक आत्मीयता जग जाती है ।आंटी के दिल में जगी यही आत्मीयता हमारे लिए किराया कम करा गयी । मकां मालिक को फ़ोन पर किराया बताया गया । उसे किराया कम लगा ,उसने कहा कल तक बताएँगे।इतनी जद्दोजहद के बावजूद भी एक कमरा हाथ नहीं लगा । इसी दुःख के साथ वहां से चल दिए । शाम का समय था ज्यादातर महिलायें और उनकी बेटियाँ घरो की छतो और बालकोनी में मौसम का आनद लेने आई थी । नीचे होने वाली हर गतिविधि पर निगाहें रखे हुए । हम निकले तो पूरी कालोनी की नज़र हम पर ही फोकुस थीं । आंटी और उनकी बेटियाँ ताड़ रही थी । थोडा असहज लगने लगा । कैमरा कोन्शिअस होना सुना था आज महिला कोन्शिअस भी होना सीख लिया।सभ्य पुरुष की यही निशानी है। बसते को काँधे पर लादे और निगाहें नीचे कर चप्पलो की चप् चप् के साथ कीचड उड़ाते हुए निकल लिए इस उम्मीद के साथ की शायद ये कमरा तो मिल ही जाये कल तक। खोज यात्रा का एक दिन तो ख़तम हुआ और अनेक पडावो से गुजर लिए। पर मंजिल अभी दूर ही थी। महानगर में एक छत ढूंढना इतना रोचक रहेगा सोचा नहीं था। सुनते थे "दिल्ली दिलवालों की है'। यहाँ बस पहले कोई घर में जगह दे दे ...दिल में जगह अपने आप बना लूँगा।