वह आयी नहीं हैं अब तक
चादरों की सिलवटों ने
किवाड के कब्जों से यूं सवाल किया 
कमरे के किनारों में सजी 
तुम्हारी महक शर्माने लगी फिर 
बताने लगी सबको
कि वह नहीं तो क्या 
मैं  छिपी  तो रहती हूँ 
फिर किचन से प्याले ने 
तर होने को अर्जी लगाई 
सूख गया होगा शायद 
बिना चाय के 
अकेले जो चाय पी जाती है
उसे बस पीया जा सकता है 
जीया नहीं जा सकता 
बाहर छत के कोनों में 
 कितने अखबार
रबरबेंड में लिपटे पड़े रह गए
पर पढ़े नहीं गए
जीने ने इठलाना शुरू कर दिया है 
खिड़की भी फिर इतरा रही है 
दरवाजा फिर धड़क रहा है शायद 
लगता है तुम आ गई हो 

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