साँसो में तुम रहो,यादों में तुम रहो
मेरे दिल में रहो ,बस रहती रहो
इस से ज्यादा भी क्या ,हँसी एहसास हो
मैं भी सुनता रहूँ ,तुम भी कहती रहो
तन में भी मन में भी बस समां जाओ तुम
रूप की सम्पदा यूँ लुटा जाओ तुम,
मैं भी बैठा हूँ बाहें बिखेरे हुए
स्वयं को अब तोः मेरा बना जाओ तुम
...............................................हिमांशु सिंह
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